बिलासपुर@M4S: दुलर्भ रक्त समूह बॉम्बे ब्लड की तत्काल एक युवक को जरुरत है,कोरबा जिला के हरदीबाज़ार निवासी २४ वर्षीय दादू सिंह कंवर २७ सितंबर की रात ड्यूटी जाते समय उनकी मोटर साइकिल दूसरे मोटर साइकिल से भिड़ंत में गंभीर रूप घायल हो गया था,हादसे में दादू को सिर और जबड़े में चोट आई है,दादू सिंह एस ई सी एल गेवरा के सेंट्रल वर्कशॉप में गार्ड के पद पर तैनात है,कुसमुंडा पुलिस ने हादसे के बाद घायल ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया था,जहा हालत नाजुक होने पर बिलासपुर के अपोलो रेफर किया गया,कोमा में पहुंच चुके दादू जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है,अपोलो के न्यूरो सर्जन डॉ.सुनील शर्मा के देख रेख में उसका उपचार जारी है,अपोलो के डॉक्टर तत्काल ऑपरेशन की सलाह दी है,लेकिन दादू के सामने सबसे बड़ी समस्या ब्लड की जो बेहद दुर्लभ है जो बॉम्बे ब्लड ग्रुप है,
बहन का ब्लड निकला बॉम्बे ब्लड
दादू की छोटी बहन १९ वर्षीय सरिता कंवर का रक्त साहू चेक किया गया तो उसका रक्त समूह बॉम्बे ब्लड निकला,अपने भाई की जान बचाने सरिता से सबसे पहले एक यूनिट ब्लड डोनेट किया,एक यूनिट रायपुर से अपोलो हॉस्पिटल की ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ.प्रेरणा मोहन के सहयोग से प्राप्त हुआ,
दादू को ब्लड,दवा,दुआ की जरुरत
अगर आप दादू की जिंदगी बचाने सहयोग करना चाहते है संपर्क कर सकते है।
सरिता कंवर (छोटी बहन):79871181699
इतवार सिंह (जीजा):8718849050
जरहाभाठा ओमपुर निवासी १८ वर्षीय अरविंद कुमार बघेल ने अपने पहली बार घायल दादू के जान बचाने ब्लड डोनेट किया,गौरतलब है की ये वही मासूम अरविंद है जिसके दिल में बचपन से छेद था,जिसका उपचार वर्ष २००६-२००७ भी बिलासपुर अपोलो में ही हुआ था,लेकिन दुर्लभ बॉम्बे ब्लड होने के कारण अपोलो के डॉक्टर बड़ी मुश्किल से मिले तीन यूनिट ब्लड के मिलें के बावजूद ऑपरेशन से इंकार कर दिया था,चेन्नई अपोलो रेफर कर दिया था,वहा पहुंचने पर डॉक्टरों ने बिलासपुर अपोलो में रखे तीन यूनिट ब्लड को उपयोग करने से साफ इंकार कर दिया था,और तीन यूनिट ब्लड ३५ दिन बाद ख़राब हो गया,फिर ब्लड की तलाश शुरू की गई,लगातार मीडिया में प्रकाशित खबरों के बाद एक बार फिर डॉनर अरविंद की जान बचाने सामने आये, बंगलुरु के नारायणा हृदयालय हॉस्पिटल में वर्ष २००७ में अरविंद के दिल का सफल ऑपरेशन हुआ,वो भी केवल दो यूनिट ब्लड में,अरविंद की जान बचाने अहम भूमिका टाटा जमशेदपुर के अमिताभ कुमार सिंह और रायगढ़ के सतीश सिंह ठाकुर खुद बंगलुरु पहुंचकर ब्लड डोनेट कर नई जिंदगी दी,अरविंद को नई जिंदगी देने में शिक्षिका शिव कुमारी,अपोलो हॉस्पिटल की ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ.प्रेरणा मोहन,रायपुर निवासी ए के पौराणिक,शिक्षक राकेश बाटवे,पत्रकार अब्दुल असलम अहम् भूमिका रही।
इसलिए इस रक्त समूह का नाम बॉम्बे रक्त समूह पड़ा,इस रक्त समूह को hh और oh रक्त समूह भी कहते है, इस रक्त समूह में h प्रतिजन खुद को अभिव्यक्त नही कर पाता जो की O रक्त समूह में होता है,इसके कारण ही यह रक्त समूह अपनी लाल रक्त कोशिकओं में A और B प्रतिजन नही बनाता,A और B प्रतिजन न बनाने के कारण ही इस रक्त समूह के लोग किसी भी रक्त समूह के लोगो को अपना रक्त दे तो सकते है पर किसी और रक्त समूह से रक्त ले नही सकते। बंबई रक्त समूह उन लोगो में पाया जाता है जिन्हें विरासत में २ प्रतिसारी एलील मिलते है H अनुवांश के,इस रक्त समूह के मनुष्य H कार्बोहायड्रेट नही बना पाते जो की A और B प्रतिजन के अग्रगामी है,इसका यह मतलब है की इस रक्त समूह में A और B प्रतिजन के एलील मौजूद तो है पर वह खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाते,यह रक्त समुह उन बच्चों में देखने को मिलता है, जिन्हें वंश परम्परा से दोनों ही एलील ऐसे मिले जो की प्रतिसारी हो।
वर्ष २००७ में जब अरविंद के लिए इस रक्त समूह के लिए प्रयास किया जा रहा था,कोलकत्ता के हेमोटोलॉजिस्ट प्रशांत चौधरी के अनुसार वर्ष २००७ तक केवल ५८ लोग पुरे देश में बॉम्बे रक्त समूह के चिन्हांकित थे,अब इस रक्त समूह के कुल ६४ चिन्हाकित,जिसमे छत्तीसगढ़ में केवल ६ बॉम्बे ब्लड रक्त समूह के है।