कोरबा@M4S; सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूल किस कदर बदहाल है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा रहा है,कि स्कूल भवन के नाम पर झोपड़ी है और शिक्षक के नाम पर कोई नहीं है। दो माह में एक बार शिक्षक अपनी सूरत दिखाने स्कूल आता है। ऐसे में अंदाजा लगाना ज्यादा कठिन नहीं है कि बच्चों का शिक्षा स्तर कैसा होगा।
कोरबा विकासखंड के सुदूर वनांचल ग्राम नकिया पंचायत के आश्रित ग्राम खम्होन में शिक्षा के नाम पर केवल मजाक किया जा रहा है। आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी यहां सरकारी शिक्षा व्यवस्था काफी बदहाल है। स्कूल भवन के नाम यहां झोपड़ी है और एक शिक्षक की तैनाती है वो भी महिने दो महिने में एक बार अपनी सूरत दिखाकर चला जाता है। करीब 15 बच्चे यहां पढ़ते है जिनका शिक्षा का स्तर कैसा होगा इसका अंदाजा लगाना ज्यादा कठिन नहीं है। स्वतंत्रता दिवस के दिन आखिरी बार शिक्षक महेंद्र टंडन यहां तिरंगा झंडा फहराने आया था लेकिन उसके बाद शिक्षक ने अपनी सूरत नहीं दिखाई। गांव की बदहाल हो चुकी शिक्षा व्यवस्था से नाराज होकर आम आदमी पार्टी की पदाधिकारी कलेक्ट्रेट पहुंचे और व्यवस्था सुधारने को लेकर प्रशासन से गुहार लगाई।ग्राम खम्होन के स्कूल को देखकर नहीं लगता कि आज के दौर में भी कोई स्कूल इस तरह बदहाली की मार झेल रहा होगा। प्रशासनिक उदासीनता के कारण स्कूल का उन्नयन आज तक नहीं हो सका वहीं शिक्षक की मनमानी से गांव में शिक्षा की अलख नहीं जग पा रही है। प्रशासन को इस दिशा में ध्यान देने की जरुरत है ताकी बच्चे शिक्षित होकर अपना भविष्य गढ़ सके।
स्कूल भवन के नाम पर झोपड़ी, शिक्षक भी नहीं अंधकार में बच्चों का भविष्य
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