सकारात्मक सोचें और सेहतमंद रहें, ऐसे पाएं नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक भावनाओं पर जीत

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नई दिल्ली(एजेंसी): जीवन की कोई बड़ी घटना कई बार आपको नकारात्मक ऊर्जा से भर देती है और वह आपको लंबे समय तक परेशान भी रखती है। ऐसी नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक भावनाओं पर जीत कैसे हासिल करें, बता रही हैं शमीम खान

जीवन में हमें कई प्रकार के हालातों का सामना करना पड़ता है और इनका सीधा प्रभाव हमारे व्यवहार पर पड़ता है। कई बार हमारे घर में कोई हादसा हो जाता है और हम बेचैन हो जाते हैं। कई बार हम गुस्से से आगबबूला हो जाते हैं, तो कई बार अपने ही व्यवहार पर इतने शर्मिंदा होते हैं कि आत्मग्लानि से भर जाते हैं। कभी हम इतनी बोरियत महसूस करते हैं कि कुछ करने की इच्छा ही नहीं होती, तो कई बार हम खुशी से झूम उठते हैं। दरअसल कोई भी सामान्य व्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग भावनाएं महसूस भी करता है और उन्हें अपने तरीके से अभिव्यक्त भी करता है। समस्या तब होती है, जब कोई नकारात्मक भावना हमारे ऊपर हावी हो जाती है। नकारात्मक भावनाएं स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसोल और एड्रिनलीन हार्मोनों को स्रावित करती हैं, जिनका मानसिक ही नहीं, शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

नकारात्मक भावनाएं
नकारात्मक भावनाएं हमारे शरीर की एक-एक कोशिका को प्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि नकारात्मक भावनाएं कई बीमारियों का कारण हैं। सकारात्मक व्यक्ति न केवल स्वस्थ रहता है, बल्कि जीवन को अधिक सहज रूप से भी जीता है।

प्रियजन की मृत्यु
अपने परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर अकसर लोग बहुत परेशान हो जाते हैं। काफी समय बीत जाने पर भी उनकी उदासी और सूनापन खत्म नहीं होता। कई लोग तो अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
दुर्घटनाएं
खुद के साथ या परिवार के किसी सदस्य के साथ हुई कोई दुर्घटना पूरे परिवार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। ऐसी स्थिति में अगर आर्थिक परिस्थितियां अनुकूल न हों, तो परेशानियां और बढ़ जाती हैं। जो लोग किसी दुर्घटना के कारण लंबे समय तक बेड रेस्ट पर रहते हैं, वे हताश हो जाते हैं कि अब उनके जीवन में कुछ नहीं बचा है।

पढ़ाई और करियर की चिंता
आज प्रतिस्पर्धा के दौर में लोग एक-दूसरे से आगे निकलने की चाह में अपने करियर को लेकर बहुर्त ंचतित रहते हैं। माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा दूसरे से किसी मामले में कम न हो। इसलिए वो लगातार उस पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव बनाते हैं। ऐसे में उसके जीवन में तनाव, अकेलापन और उदासी बढ़ने लगती है। ऐसे लोग कई बार प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं और लोगों से ईष्र्या करने लगते हैं।

तलाक और अलगाव
कोई रिश्ता जब टूटता है, तो उसका प्रभाव उससे जुड़े हर व्यक्ति पर पड़ता है। अगर पति-पत्नी दोनों अलग होने या तलाक लेने का निर्णय लेते हैं, तो इसका प्रभाव उन दोनों पर तो पड़ता ही है, उनके बच्चे इस दर्द से जीवनभर नहीं उबर पाते हैं।

विपरीत परिस्थितियां
जब चीजें आपके अनुकूल नहीं होतीं, तो आप गुस्से से भर जाते हैं। थोड़े समय बाद यदि परिस्थितियां सामान्य हो जाएं, तो आपका व्यवहार भी सामान्य हो जाता है, लेकिन परिस्थितियां प्रतिकूल बनी रहें, तो गुस्से और हताशा की भावना उनमें घर कर लेती हंै। ट्रैफिक जाम, फ्लाइट या ट्रेन का रद्द होना आदि के कारण भी गुस्सा आ सकता है।

नकारात्मक भावनाएं और हमारा स्वास्थ्य
’भावनात्मक उथल-पुथल हमारे इम्यून तंत्र को कमजोर बना देती है, जिससे बीमारियों और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
’तनाव के कारण कई लोगों को कब्ज हो जाता है। उदासी और आत्मग्लानि की भावना भी पाचन तंत्र को प्रभावित करती है।
’जब भी आप गुस्से में होते हैं या भयभीत होते हैं तो दिल तेजी से धड़कने लगता है, ऐसा इसलिए होता है कि आपका शरीर, जितना अधिक संभव हो उतना रक्त उपलब्ध कराने के लिए अधिक काम करता है।
’गुस्से के कारण टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग आसानी से गुस्सा हो जाते हैं, उनमें टाइप 2 डायबिटीज होने की आशंका शांत लोगों की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक होती है। कई अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि नकारात्मक भावनाएं मानसिक क्षमता को कम करती हैं। हमारी ध्यान केंद्रण की शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता भी इससे प्रभावित होती है।

आत्मग्लानि महसूस करना
कई बार हम कुछ ऐसा बोल देते हैं या कर जाते हैं कि आत्मग्लानि से भर जाते हैं। अगर आप अतीत की किसी घटना को लेकर आत्मग्लानि से भरे रहेंगे तो आप अपने वर्तमान को बर्बाद कर लेंगे। अपनी गलती को सुधारने का प्रयास करें, लेकिन आत्मग्लानि से न भरें।
भय
इस दुनिया में कौन ऐसा होगा, जिसे कभी किसी बात र्की ंचता नहीं हुई होगी या कभी डर का अनुभव नहीं हुआ होगा। लेकिन जब ये दोनों भावनाएं इतनी अधिक बढ़ जाएं कि आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएं, तो समझिए आप एंग्जाइटी के शिकार हो गए हैं। अगर एंग्जाइटी के लक्षण छह महीने से अधिक समय तक बने रहें, तो यह समस्या अत्यंत गंभीर हो जाती है और जीवन में नकारात्मकता आ जाती है।
(मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंस के निदेशक डॉ. समीर मल्होत्रा से की गई बातचीत पर आधारित)

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