नई दिल्ली(एजेंसी):कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से भारत में हवा की गुणवत्ता में बहुत सुधार देखा गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे उपायों का इस्तेमाल गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में किया जा सकता है, जब दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में अक्सर सर्दियों के महीने में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंच जाता है।
पांच जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस से पहले, विशेषज्ञों ने कई पर्यावरणीय कारकों को रेखांकित किया है, जो भारत में लॉकडाउन की वजह से देखने को मिले हैं। लॉकडाउन में औद्योगिक और मानवीय गतिविधियां कम होने के कारण हवा की गुणवत्ता सुधरी है, ध्वनि प्रदूषण कम हुआ है, जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और जैवविविधता समेत कई अन्य चीजों में सुधार देखने को मिला है।
भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी को रोकने के उपाय के तहत लोगों की आवाजाही को सीमित करते हुए 24 मार्च को 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था। तब से लॉकडाउन को क्रमिक ढंग से कई बार बढ़ाया गया है। हालांकि इस बीच चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंधों में ढील भी दी गई है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के वायुमंडलीय और महासागरीय विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर एस के सतीश ने कहा, ”विशेषकर शहरी क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में बड़ा सुधार है, जो गंभीर या खराब श्रेणी से अब संतोषजनक या अच्छी स्थिति में पहुंच गई है। इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों में कमी होना है।
उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, ”भारत के दक्षिणी हिस्से में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) सांद्रता में औसतन कमी लगभग 50 से 60 प्रतिशत आई है और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि जैसे उत्तरी और पूर्वी राज्यों में पीएम सांद्रता में 75 प्रतिशत तक की कमी आई है।
सतीश ने कहा कि प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों, उद्योगों, फसल-अवशेष जलाने, अपशिष्ट जलाने आदि की वजह से होता है। उन्होंने बताया कि शहरों में, आधे से अधिक वायु प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण होता है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान सड़क पर वाहनों की संख्या में बड़ी कमी आई, जिसकी वजह से शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में कमी आई है।
मई में ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित दो अध्ययनों के अनुसार, कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए दुनिया भर में लॉकडाउन के लागू होने के बाद से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सहित दो प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर में भारी कमी आई है।
सतीश ने कहा कि भारत में उपग्रह द्वारा एकत्र किए गए डेटा के अनुसार, देश के अधिकांश हिस्सों में लॉकडाउन के बाद पार्टिकुलेट मैटर (अभिकणीय पदार्थ) या एयरोसोल के स्तर में भारी गिरावट देखी गई है। वैज्ञानिक ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से उपलब्ध आंकड़ों के अलावा, एयरोसोल अवशोषण के बहु-वर्णक्रमीय माप से संकेत मिलता है कि प्रदूषण के स्तर में भारी कमी मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जलने से होने वाले उत्सर्जन में कमी के कारण हुई है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर के पृथ्वी विज्ञान के सहायक प्रोफेसर मनीष कुमार सिंह ने भी सतीश के साथ सहमति व्यक्त करते हुये कहा कि लॉकडाउन जैसे उपायों से भविष्य में प्रदूषण का मुकाबला किया जा सकता है।
पर्यावरण अभियंता बोस के वर्गीस ने कहा कि जब लॉकडाउन लागू हुआ, तो कोई भी वास्तव में पर्यावरण के बारे में नहीं सोच रहा था क्योंकि लोग पूर्ण लॉकडाउन के प्रत्यक्ष नतीजे को देख रहे थे।
इन्फोसिस लिमिटेड में ग्रीन इनिशिएटिव्स के प्रमुख वर्गीस ने कहा, ”जैसे-जैसे दिन बीतते गए और हम घर के अंदर जीवन यापन के लिए संघर्ष करते रहे, हम अपने आसपास के वातावरण को बदलते हुए देखने लगे। वर्गीज ने कहा, “सबसे अधिक ध्यान देने योग्य प्रभाव यह हुआ कि स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी, कम अपशिष्ट, बहुत कम शोर और लुप्तप्राय वन्यजीव देखने को मिले।
वर्गीज ने कहा कि जब कोविड-19 का खतरा कम हो जाएगा, तो चीजें फिर से जल्दी सामान्य हो जाएंगी । तो ऐसे में यह उम्मीद है कि लोग जीवन शैली में आये कुछ बदलावों को बरकरार रखेंगे जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं।