नई दिल्ली(एजेंसी):कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए 25 मार्च से देशभर में लागू किए गए 68 दिनों के लॉकडाउन में कितने प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई? इसके जवाब में केंद्र सरकार ने संसद को बताया है कि इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लॉकडाउन की वजह से लाखों मजदूरों ने शहरों से गांवों की ओर पलायन किया था, जिनमें से कई की मौत रास्ते में अलग-अलग वजहों से हो गई थी।
लोकसभा में सवाल किया गया था कि क्या सरकार इस वाद से अवगत है कि घरों को लौटते हुए कई मजदूरों की रास्ते में मौत हो गई और क्या राज्यवार मृतकों की संख्या उपलब्ध है? यह भी पूछा गया कि क्या पीड़ितों को सरकार ने कोई मुआवजा या आर्थिक सहायता दी?
केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने इसके जवाब में कहा कि मृतकों की संख्या को लेकर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। मंत्रालय ने कहा कि चूंकि इस तरह का डेटा नहीं जुटाया गया था इसलिए पीड़ितों या उनके परिवारों को मुआवजे का सवाल नहीं उठता। एक अन्य सवाल प्रवासी श्रमिकों को हुई परेशानी का अनुमान लगाने में सरकार की विफलता को लेकर पूछा गया था।
श्रम और रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने कहा, ”एक राष्ट्र के रूप में भारत ने केंद्र और राज्य सरकारों, लोकल बॉडीज, सेल्फ हेल्प ग्रुप्स, रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशंस, चिकित्साकर्मियों, सफाई कर्मचारियों और बड़ी संख्या में एनजीओ ने कोरोना वायरस और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से इस अभूतपूर्व मानवीय संकट के खिलाफ काम किया।”
30 मई को हिन्दुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट दी थी कि 9 से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मजदूरों की मौत हो गई थी। लाखों प्रवासी श्रमिकों को शहरों से उनके गांवों में पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की गई थी। रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स से उपलब्ध डेटा के मुताबिक जान गंवाने वालों में 4 से 85 साल की उम्र तक के लोग थे। आंकड़ों से यह भी पता चला कि कुछ मामलों में मौत दुर्घटना या अन्य किसी बीमारी की वजह से हुई।