कोरबा@M4S: जिले के शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में नदियों से रेत का अवैध दोहन बेतहाशा हो रहा है। कहने को तो नियमों के तहत रेतघाटों का संचालन हो रहा है और आवंटित घाटों से रेत निकल रही है लेकिन आबंटित घाटों के अतिरिक्त ऐसे क्षेत्र जहां अभी आवंटन सुनिश्चित नहीं हुआ है और जहां रेत के घाट नहीं हैं, वहां से भी रेत का दोहन किया जा रहा है। इनमें प्रमुख रूप से नगर पालिक निगम और कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मोतीसागर पारा सीतामढ़ी से होकर बहने वाली हसदेव नदी और गेरवाघाट प्रमुख हैं।
इन दोनों घाटों के संचालन की अनुमति अपरिहार्य और तकनीकी कारणों से अभी तक नहीं मिली है। सीतामढ़ी घाट पिछले वर्षों विवादित रहा है। नदी में ही भंडारण की अनुमति प्रदान कर दी गई। अभी जबकि नए सिरे से घाटों का आवंटन की प्रक्रिया हुई तो सीतामढ़ी मोतीसागरपारा घाट एवं गेरवाघाट को छोडक़र प्राय: सभी रेत घाटों के संचालन की अनुमति प्रदान कर दी गई है, इसके बावजूद सीतामढ़ी घाट से रेत का परिवहन आज तक नहीं रुका है। कथित तौर पर यहां का नाका सील्ड है पर कहानी ठीक उलट है। खनिज विभाग 2-4 ट्रैक्टरों को कभी कभार पकडक़र कार्यवाही की बात करता है लेकिन हकीकत इससे परे है। स्थानीय लोग बताते हैं कि मोतीसागर पारा से औसतन हर दिन 50 से 60 ट्रैक्टर रेत निकाली जा रही है। दूसरी तरफ गेरवाघाट से मौका देख-देखकर रेत निकालकर रात में खपाई जा रही है। सीतामढ़ी में सुबह से रात तक तो गेरवाघाट में रात-रात को रेत का कारोबार हो रहा है। शनिवार,रविवार और सरकारी अवकाश के दिन खास होते हैं।वैसे ही कुसमुंडा क्षेत्र के बरमपुर से होकर बहने वाली नदी रेत के चोरों के लिए सोना उगल रही है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि बरमपुर से हर दिन बड़े पैमाने पर रेत निकाल कर अंदरूनी रास्तों से होते हुए एक विद्युत संयत्र तक पहुंचाई जा रही है जहां संयंत्र के निर्माण कार्य में चोरी की रेत खपाए जाने की सूचना है। इसके अलावा कई सरकारी निर्माण कार्यों में भी चोरी की रेत धड़ल्ले से खपाई जा रही है। मात्र 491 रूपये प्रति ट्रैक्टर की दर से बिकने वाली सरकारी रेत 8 से 10 गुना ज्यादा कीमत पर बेचने व मजबूरन खरीदने का काम चल रहा है। कटघोरा के ग्राम डुडगा, पश्चिमांचल के अहिरन नदी,करतला क्षेत्र से होकर बहने वाली नदी से रेत की चोरी हो रही है। जिस पैमाने पर एक महीने में कार्यवाही हुई है उसके मुकाबले अवैध खननकर्त्ता 1 दिन में 100 से अधिक ट्रैक्टर रेत पार कर रहे हैं। रेत की चोरी के मुकाबले विभागीय धरपकड़ नाकाफी कहना गलत नहीं होगा। रेत के मामले में यह भी गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा स्पष्ट निर्देशित किया गया है कि शासकीय निर्माण कार्यों में चोरी के रेत व अन्य खनिज संसाधनों का उपयोग बिलकुल ना किया जाए। अवैध रेत खनन व परिवहन के मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं। पूर्व के वर्ष में रेत चोरी के मात्र 2 प्रकरण दर्ज हुए हैं और इसके बाद विराम लगा दिया गया। जिले में कलेक्टर, एसपी के बदलने और थानों में प्रभारियों के बदलने के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश का पालन अपने-अपने अनुसार किया और कराया जा रहा है। राजस्व अमला भी इस मामले में शिथिल रवैया अपनाए हुए है। खनिज संसाधनों के अवैध खनन/परिवहन को रोकने की पूरी जिम्मेदारी खनिज अमले की है लेकिन अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहा तो मुख्यमंत्री सह खनिज मंत्री भूपेश बघेल ने कोरबा जिले में पूरा का पूरा खनिज अमला ही बदल दिया। वाहन चालक और भृत्य से लेकर अधिकारी तक बदलने के बाद उम्मीद थी कि खनिजों के अवैध दोहन और परिवहन पर सख्ती से विराम लगेगा लेकिन कहानी वही ढाक के तीन पात वाली चरितार्थ हो रही है।