राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन को एकता परिषद ने दिया समर्थन कवर्धा से मुरैना तक किसानों के मुद्दे पर जनजागरूकता यात्रा आज से 17 दिसंबर से राजगोपाल पी.व्ही. की अगुवाई में मुरैना से दिल्ली की ओर पद यात्रा

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भोपाल@M4S:दिल्ली बॉर्डर पर चले रहे किसान आंदोलन का एक पखवाड़े से ज्यादा समय हो गया। देष भर के लाखों किसान इस मांग पर अड़े हुए हैं कि कुछ महीने पहले लागू किए गए किसान विरोधी कृषि क़ानून वापस लिए जाएं, लेकिन केन्द्र सरकार किसानों की बात मानने के बजाय उन कानूनों को सही ठहराने में लगी हुई है। खेती-किसानी के इस संकटपूर्ण समय में एकता परिषद ने राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन को समर्थन देने का निर्णय लिया है। कल 13 दिसंबर से 16 दिसंबर तक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कवर्धा तहसील से मध्यप्रदेश के मंडला, डिंडोरी, उमरिया, कटनी, दमोह, सागर, ललितपुर, झांसी, दतिया, ग्वालियर होते हुए मुरैना तक की जागरूकता यात्रा निकाली जा रही है। इसकी अगुवाई एकता परिषद के संस्थापक एवं गांधीवादी राजगोपाल पी.व्ही. करेंगे। इसके बाद 17 दिसंबर से केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना से दिल्ली की ओर पद यात्रा निकाली जाएगी। यात्रा में किसानों के पक्ष में व्यापक समाज को जोड़ने का काम किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली बॉर्डर पर डटे किसान यह बताना चाहते हैं कि कुछ महीना पहले खेती-किसानी में सुधार को लेकर सरकार ने जो तीन कानून लाए हैं, वे किसानों के हित में नहीं हैं बल्कि इन कानूनों के कारण देश के किसान बर्बाद हो जाएंगे और उद्योगपति मालामाल हो जाएंगे। पिछले चार महीने से ,अलग-अलग राज्यों में हो रहे किसानों के प्रदर्शन और किसान संगठनों की मांगों को सरकार ने नहीं सुना, तो किसानों ने एकजुटता दिखाते हुए दिल्ली जाकर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया। इन कानूनों का प्रभाव सिर्फ किसानों पर नहीं पड़ेगा, बल्कि पूरे समाज पर पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि किसानों के इस आंदोलन को देष के हर जन संगठन, समुदाय और वर्ग को साथ देना चाहिए।
एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार का कहना है कि ये कृषि सुधार कानून बड़े कॉरपोरेटों और विशाल कृषि व्यापार कम्पनियों सहित बड़े थोक व्यापारियों के पक्ष में बने हैं। किसान कल्याण की बज़ाय कॉरपोरेट कल्याण के कानून हैं। आज के किसान, कल के मजदूर बन जाएंगे। देश की एक बड़ी आबादी सुरक्षित आजीविका से बाहर हो जाएगी। निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग पर महंगाई की मार बढ़ेगी और वे गरीबी की ओर धकेल दिए जाएंगे। शिक्षा और स्वास्थ्य के निजीकरण का परिणाम हम देख रहे हैं। आज गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत ही महंगी हो गई हैं। यही स्थिति सरकार खाद्यान के क्षेत्र में करने जा रही है, जिसका असर न केवल किसानों पर बल्कि हम सब पर पड़ने वाला है।
एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक अनीष कुमार का कहना है कि जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर काम करते हुए एकता परिषद ने हमेशा किसानों के हित की बात की है, खासतौर से छोटे और सीमांत किसानों को। ऐसे में जब उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किसानों के नाम पर पर जो कानून बनाए गए हैं, उसका विरोध करते हुए एकता परिषद ने उनका साथ देने का निर्णय लिया है। इसलिए एकता परिषद समाज के हर तबके से अनुरोध करता है कि देश हित में वे किसानों का समर्थन करने के लिए आगे आएं।
एकता परिषद के संस्थापक एवं गांधीवादी राजगोपाल पी.व्ही. ने आह्वान किया है कि 16 दिसंबर की शाम को या 17 दिसंबर की सुबह मुरैना पहुंचें, जो कि केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर का संसदीय क्षेत्र है। मुरैना से एकता परिषद की अगुवाई में दिल्ली बॉर्डर पर डटे किसानों के समर्थन में पद यात्रा निकाली जाएगी।
संपर्क – अनीष कुमार राष्ट्रीय संयोजक, एकता परिषद – 9971964569
संक्षिप्त में कानून के बारे में –
किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020 के मुताबिक़, किसान अपनी उपज एपीएमसी यानी एग्रीक्लचर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी की ओर से अधिसूचित मण्डियों से बाहर बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं। दूसरे शब्दों में, कृषि क्षेत्र में आने और किसानों से सीधे लेन-देन करने के लिए निजी उद्योगपतियों के लिए बाजार पूरी तरह से खोल दिया गया है। इस कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी का जिक्र नहीं है। मंडी से किसानों को अलग करने के लिए शुरू में व्यापारी किसानों की फ़सल खरीदते समय उन्हें कुछ ज़्यादा मूल्य देने की चाल चलेंगे क्योंकि बाहर उन्हें मंडी टैक्स नहीं देना पड़ेगा, लेकिन मंडी व्यवस्था ध्वस्त होते ही व्यापारी एकजुट होकर किसान उत्पादों की वैसी ही लूट मचाएंगे, जो इन मंडियों के वजूद में आने से पहले हुआ करती थी।
कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) क़ानून, 2020 के अनुसार किसान अनुबंध वाली खेती कर सकते हैं और सीधे उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं। यानी कानून के तहत अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर सकें। कॉरपोरेट खेती के लिये तर्क गढ़ा गया है कि पूँजी की कमी, छोटी जोतों में खेती अलाभप्रद होना, यांत्रिक और तकनीकी संसाधनों के उपयोग से खेती करने में अक्षमता के कारण पारिवारिक खेती करने वाले किसान खेती का उत्पादन बढ़ाने में सक्षम नही हैं।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020 के अनुसार, उत्पादन, स्टोरेज के अलावा अनाज, दाल, खाने के तेल, प्याज की बिक्री को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है। यह बहुत ही खतरनाक है। किसान तो अपने उत्पादन को पहले भी स्टॉक करके रख सकता था। नई छूट व्यापारियों को मिली है। व्यापारी अब जितना चाहें उतना स्टॉक रख सकते हैं। एक तरह से जमाखोरी को कानूनी संरक्षण दिया गया है। बड़ी कंपनियों को ब्लैक मार्केटिंग करने का एक कानूनी जरिया मिल जाएगा।

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