यह हैं छठ पूजा की परंपरा और रीति-रिवाज, कल से शुरू हो रहा है आस्था का महापर्व छठ

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नई दिल्ली(एजेंसी):ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ फर्श पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा शुरु कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पडेगा और इसे तभी छोडा जा सकता है जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो।

व्रत करने वाले भक्त छठ पर मिठाई, खीर, ठेकुआ और फल, कच्ची हल्दी की गाँठ, घी से बना मीठी पूड़ी, मालपुआ, नारियल , चने की प्रसाद सहित अनेको प्रकार के वस्तु को छोटी बांस की टोकरी में सूर्य देव को प्रसाद के रूप में अर्पण करते है। प्रसाद की शुद्धता बनाये रखने के लिये बिना नमक, प्याज और लहसुन के तैयार किया जाता है। यह त्यौहार 4 दिन तक चलता है :

(1):- पहले दिन जिसे नहाय खाय कहा जाता के दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते है और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घऱ भी लेकर आते है। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई करते है । वे एक वक्त का खाना लेते है, जिसे कद्दू-भात के रुप में जाना जाता है जो केवल मिट्टी के (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके ताँबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।

(2) :- दूसरे दिन अर्थात पंचमी को जिसे खरना कहा जाता है । इस दिन व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन उपवास रखते है और शाम को धरती माता की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते है। वे पूजा में खीर, पूड़ी और फल मिठाई अर्पित करते है। शाम को खाना खाने के बाद, व्रत करने वाले भक्त बिना पानी पियें अगले 36 घण्टे का उपवास रखते है।
(3):- तीसरे दिन अर्थात प्रमुख दिन नदी के किनारे घाट पर संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते है। अर्घ्य देने के बाद वे पीले रंग की साडी पहनती है। परिवार के अन्य सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ की रात कोसी पर पाँच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। पाँच गन्ने पंच तत्वों जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को प्रर्दशित करते है जिससे मानव शरीर का निर्माण करते है।
(4) :- चौथे अर्थात अंतिम दिन की सुबह व्रत करने वाले भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्थात सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते है। उसके बाद ही छठ का प्रसाद खाकर व्रत खोलते है।

 

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