मांसाहारी से बनना होगा शाकाहारी तभी 2050 तक पृथ्वी झेल पाएगी हमारा भार

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पेरिस@(एजेंसी):जलवायु परिवर्तन की भयावहता को कम करने के लिए दुनिया को निश्चित रूप से मांस की खपत में काफी कमी लानी होगी। हम जो कुछ खाते हैं उसका हमारे पर्यावरण पर क्या असर होता है, इस विषय पर किए गए अब तक के सबसे गहन अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ये बात कही।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ने के मद्देनजर पृथ्वी को बचाने की जद्दोजहद में मानवता को सख्त चयन करना होगा। अनुसंधानकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि पश्चिमी देशों को अपनी मांस खपत में 90 फीसदी की कटौती करनी होगी ताकि पृथ्वी 2050 तक अपनी अनुमानित 10 अरब जनसंख्या को वहन कर सके।
घटते वन और बेतहाशा मात्रा में पानी का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण हैं। यह अध्ययन बुधवार को नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसमें बताया गया है कि किस तरह से गहन कृषि हमारे ग्रह की जलवायु के लिए खराब है।
इसके लेखकों ने कहा कि मांस की खपत में कटौती किए बगैर खाद्य उद्योग का पर्यावरण पर व्यापक असर सदी के मध्य तक 90 फीसदी तक बढ़ सकता है।
इसके अलावा बढ़ती वैश्विक आबादी ने मानव की भोजन की आवश्यकता पूरी करने की उसकी क्षमता प्रभावित की है और यह जलवायु परिवर्तन में कटौती की किसी भी वास्तविक उम्मीद को धूमिल करती है।
वैज्ञानिकों ने शाकाहार आधारित भोजन की ओर बढ़ने का सुझाव दिया है और खाद्य अपशिष्ट में कमी लाने तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद से खेती के चलन में सुधार लाने का सुझाव दिया है।

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