कोरबा@M4S: राज्य विद्युत उत्पादन के सामने राखड़ का निस्तारण बड़ी समस्या बनी हुई है ।कंपनी के फ्लाई ऐश डेक राख से भर गए हैं ।रोजाना लगभग 18000 टन फ्लाई ऐश बिजली उत्पादन के बाद निकल रहा है ।राखड़ का उपयोग कई तरह से किया जाता है ।मगर जिस रफ्तार से राखड़ निकल रहा है उसका उचित निपटान नहीं होना चुनौती का सबब बन गया है।
बिजली बनाते समय कोयले से 35-40 प्रतिशत तक फ्लाई ऐश निकलती है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी के तीन प्लांट चालू हैं। तीनों में हर दिन 45 हजार टन कोयले की खपत है, जिससे लगभग 18 हजार टन फ्लाई ऐश रोज निकल रही है। कोरबा में स्थित प्लांट में 1980 से फ्लाई ऐश जमा हो रही है, जिसे समय-समय थोड़ा बहुत डिस्पोजल भी किया जाता है। यही वजह है कि कोरबा में 4 राखड़ के पहाड़ खड़े हो गए हैं। अभी तक 554.57 लाख टन ऐश खत्म की जा चुकी। डॉ. श्यामाप्रसाद प्लांट, कोरबा 190 लाख टन, हसदेव थर्मल प्लांट, कोरबा 211 मिट्रिक टन और अटलबिहारी प्लांट, मड़वा में 46 लाख टन राख जमा है।छत्तीसगढ़ में बिजली कंपनियों से निकलने वाली फ्लाई ऐश (राख) के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैं। वर्तमान में 450 लाख टन फ्लाई ऐश जमा हो चुकी है, इसको डिस्पोजल करना छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी के लिए चुनौती बन गया है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी अधिकारियों को ऐश को जल्द से जल्द डिस्पोजल करने के निर्देश दिए थे। आखिर यह राख के पहाड़ कैसे तैयार हो गए, पहले सीमेंट कंपनियां मुफ्त में राख ले जाती थी, पिछले कई सालों से उन्होंने लेना बंद कर दिया है।नेशनल हाइवे बनाने के लिए बेस में फ्लाई ऐश का उपयोग होता है। यहां भी ऐश का बड़ा उपयोग है, लेकिन इसका ट्रांसपोर्टेशन बड़ा चैलेंज है। इसलिए एनएच अथॉरिटी भी करीब की कंपनियों से ऐश लेती हैं।ईंट बनाने के लिए भी फ्लाई ऐश का उपयोग होता है। इसे नीलाम करने के लिए सरकारी पीएसयू एमएसटीसी से बिजली कंपनी ने टाइअप करने की कोशिश की थी। लेकिन दोनों पक्षों में बात नहीं बन पाई।मिनरल्स की खदानों में जो बड़े गड्?ढे हो जाते हैं, उन्हें भरने के लिए भी फ्लाई ऐश का उपयोग होता है। सरकार ने मानिकपुर में एक गड्ढेदार खदान ही दी है, जहां फ्लाई ऐश का अभी डिस्पोजल हो रहा है। इसकी वजह से इसकी वजह से राख का उचित निपटान नहीं हो पा रहा है छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी की उत्पादन क्षमता 2840 मेगा वाट है।वर्तमान में मडवा की 500 मेगा वाट की यूनिट उत्पादन में नहीं है ।इसके अलावा अन्य इकाइयां फुल लोड पर बिजली पैदा कर रही है। इसकी वजह से रोजाना राख 18000 टन से ज्यादा निकल रही है ।इसके मुकाबले लाखन का उपयोग नहीं हो पा रहा है।