बंदिश खुलने से पहले ही धड़ल्ले से हो रही रेत निकासी

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15 अक्टूबर तक रेत निकासी पर लगाई गई है पाबंदी
कोरबा। अधिकृत रूप से रेत निकासी और परिवहन की व्यवस्था जल्द ही प्रारंभ होने वाली है । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा 15 जून से लगाई गई बंदिश 15 अक्टूबर को समाप्त हो रही है। इस पूरे सीजन में कोरबा जिले में रेत की चोरी जोर-शोर से जारी रही। 16 अक्टूबर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा लगाई गई रोक हट जाएगी और इसके साथ ही रॉयल्टी के आधार पर रेत की निकासी और परिवहन का काम प्रारंभ हो जाएगा। इसलिए निर्धारित तारीख से पहले रेत की जितनी चोरी करना है। इसे चुनौती के रूप में लिया जा रहा है और काम को परवान चढ़ाया जा रहा है। अंतिम दिनों में इस काम को पूरी रफ्तार से अंजाम दिया जा रहा है। आधी रात को ऐसे कई नजारे क्षेत्र में प्रकाश में आए, जिनमें सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टरों को रेत ले जाते हुए देखा गया। दावा किया जा रहा है कि प्रतिबंध काल में यह काम हर स्तर पर सांठगांठ के आधार पर भली-भति चलता रहा।
हर वर्ष वर्षा कालखंड में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नदी नालों से रेत खनन और परिवहन संबंधी गतिविधियों को पूरी तरह से रोक देता है। इसके पीछे कई तरह के पर्यावरणीय और तकनीकी कारण बताए जाते हैं। इस स्थिति में जरूरी प्रकृति के निर्माण कार्य के लिए रेत की उपलब्धता संबंधित लोगों को उन स्थानों से हो पाती है जो खनिज विभाग से रेत भंडारण की विधिवत अनुमति लेते हैं। कोरबा में इस बार विभाग ने 13 स्थानों पर रत स्टॉक के लिए अनुज्ञा जारी की है। इस तरह की जानकारी पूर्व में जारी की गई। इन सबके बावजूद हालात ऐसे रहे की कोरबा के शहरी ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न नदी नालों से रेत की निकासी और परिवहन तथा काम प्रतिबंधित अवधि में भी भली-भांति जारी रहा। हाईवा और पोकलेन के साथ-साथ ट्रैक्टर का उपयोग इस काम में किया गया । रात्रि 10 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक इस तरह का काम निर्बाध रूप से जारी रहा।
खबर के अनुसार कोरबा के बरहमपुर, कुसमुंडा, बाकी मोगरा , भिलाई खुर्द, कटघोरा, छुरी कला सुहागपुर ,पसान और बालको नगर इलाके से इस तरह की गतिविधियों को भलीभांति अंजाम दिया जाता रह। मौके पर रेत की निकासी करने से लेकर परिवहन से जुड़े काम बड़ी आसानी से होते रहे। अनुमान है कि हर रोज रेत चोरी का यह काम कई हजार क्यूबिक मीटर पर आधारित रहा और इसके माध्यम से रेत चोरों ने कॉफी आमदनी की। जाहिर तौर पर इस व्यवस्था से उन लोगों को नुकसान हुआ, जिन्होंने सरकारी नियम शर्तों के अंतर्गत रेट निकासी की अनुज्ञप्ति के लिए सरकार को लाखों रुपए अदा किए और घाट के पट्टे लिए।

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