लखनऊ(एजेंसी):करीब 25 साल पहले पीलीभीत जनपद में अंजाम दिए गए फर्जी मुठभेढ़ के बहुचर्चित मामले में सोमवार को राजधानी की सीबीआई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में सभी 47 मुल्जिम पुलिस वालों को अपहरण, हत्या व हत्या का षडयंत्र रचने का आरोपी बताते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही सीबीआई कोर्ट के विशेष जज लल्लू सिंह ने आरोपी प्रत्येक इंस्पेक्टर पर 11-11 लाख, एसआई पर आठ-आठ लाख और सिपाहियों पर 2.75 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। किसी फर्जी मुठभेड़ कांड में एक साथ इतने पुलिस वालों को उम्रकैद की सजा देने का यह पहला मामला है।
सभी आरोपियों पर पीलीभीत के तीन थाना क्षेत्रों में फर्जी मुठभेड़ के जरिए 10 सिक्ख तीर्थ यात्रियों को उग्रवादी बताकर उनकी हत्या करने का इल्जाम है। उधर शाम को मुल्जिमों के घर वालों ने कोर्ट में हंगामा किया। इनका आरोप था कि उन्हें कोर्ट से फैसले की प्रतिलिपि नहीं दी जा रही है। साथ ही यह भी आरोप लगाया कि फैसला आने से पहले उम्रकैद की सजा न्यूज चैनलों में प्रसारित होने लगी थी।
38 मुल्जिम भेजे गए जेल
1 अप्रैल को सीबीआई के विशेष जज लल्लू सिंह ने अदालत में मौजूद आरोपी 20 पुलिस कर्मियों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था। शेष 27 मुल्जिमों के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। सीबीआई ने 27 टीमें बनाकर मुल्जिमों के घर दबिश दी। इसमें 18 मुल्जिम गिरफ्तार कर लिए गए। सोमवार को सीबीआई ने मामले के 38 मुल्जिमों को अदालत में पेश किया। सजा पर सुनवाई के दौरान विशेष जज लल्लू सिंह ने सभी से उनका पक्ष सुना। इसके बाद फैसला सुनाया। अदालत के आदेश के साथ ही पुलिस ने 38 मुल्जिमों को जेल भेजा।
फैसले से लगा मरहम
फर्जी एनकाउंटर में मारे गए छह सिख तीर्थ यात्रियों के घरवाले अदालत पहुंचे थे। 25 साल की कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने आरोपी पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई तो उनके जख्मों पर मरहम लगा। हालांकि अभियोजन पक्ष ने मुल्जिमों को मृत्युदण्ड दिए जाने की मांग की थी।
यह था मामला
सीबीआई के वकील एससी जायसवाल के मुताबिक 12 जुलाई, 1991 को नानकमथा, पटना साहिब, हुजुर साहिब व अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करकें 25 सिक्ख तीर्थ यात्रियों का जत्था वापस लौट रहा था। सुबह करीब 11 बजे पीलीभीत जिले के कछालाघाट पुल के पास पुलिस द्वारा इन यात्रियों की बस रोक ली गई। बस का नंबर यूपी-26, 0245 था। 11 सिक्ख तीर्थ यात्रियों को बस से उतार लिया गया। उतारे गए यात्री बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह उर्फ जस्सी, सुरजन सिंह उर्फ विट्टा, हरमिंदर सिंह, जसवंत सिंह उर्फ फौजी, करतार सिंह, लखमिंदर सिंह उर्फ लक्खा, रंधीर सिंह उर्फ धीरा, नरेंद्र सिंह उर्फ नरेंद्र, मुखविंदर सिंह उर्फ मुक्खा व तलविंदर सिंह को पीलीभीत पुलिस जबरिया मिनी बस से लेकर चली गई। फिर अलग-अलग थाना क्षेत्रों में मुठभेड़ दिखाकर इन्हें मार दिया गया। जबकि तलविंदर आज तक लापता है। पुलिस द्वारा इस मुठभेड़ की थाना विलसंडा, थाना पूरनपुर व थाना नोरिया में एफआईआर दर्ज कराई गई। जिसमें मारे गए यात्रियों पर अवैध असलहों से पुलिस पार्टी पर जानलेवा हमले का आरोप लगाया गया था।
एक साल बाद शुरू हुई सीबीआई जांच
15 मई, 1992 को वकील आरएस सोढ़ी की एक पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया। सीबीआई की जांच में कई जनपदों के विभिन्न थाना क्षेत्रों के एसओ, एसआई व कांस्टेबलों का नाम सामने आया। 12 जून, 1995 को सीबीआई ने 57 पुलिस वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 364, 365 व धारा 218 सपठित धारा 120 बी के तहत चार्जशीट दाखिल की। जिसमें पीलीभीत के थाना नोरिया के तत्कालीन एसओ चंद्रपाल सिंह, थाना पुरनपुर के एसओ विजेंदर सिंह, एसआई एमपी विमल, आरके राघव व सुरजीत सिंह, विलसंडा थाने के एसआई वीरपाल सिंह, अमेरिया थाने के एसओ राजेंद्र सिंह, देओरीकलां थाने के एसआई रमेश चंद्र भारती, गजरौला थाने के एसआई हरपाल सिंह, जनपद बदायूं के थाना इस्लाम नगर के एसओ देवेंद्र पांडेय, जनपद अलीगढ़ के थाना सदनी के एसओ मोहम्मद अनीस समेत इन सभी थानों के अनेक कांस्टेबलों को इस फर्जी मुठभेड़ का मुल्जिम बनाया।
मुल्जिमों पर आरोप तय
तमाम कानूनी दांव-पेंच के बाद 20 जनवरी, 2003 को अदालत ने 55 मुल्जिमों पर आईपीसी की धारा 302, 364, 365, 218 व धारा 117 सपठित धारा 120 बी के तहत आरोप तय किया। क्योंकि ट्रायल से पहले दो मुल्जिमों की मौत हो चुकी थी। जबकि ट्राॠयल के दौरान इस मुकदमे के 10 मुल्जिमों की मौत हुई। शेष 47 मुल्जिमों के मामले में बीते 29 मार्च को अंतिम बहस पर सुनवाई पूरी करते हुए सीबीआई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। सीबीआई की ओर से इस मुकदमे में कुल 67 गवाहों के बयान दर्ज कराए गए थे जबकि करीब 3400 पेज का बयान मुल्जिमों के दर्ज किए।