लखनऊ (एजेंसी):इस बार पितृपक्ष कल (13 सितंबर) शुक्रवार से शुरू होकर 28 सितंबर शनिवार आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक रहेगा। इस दौरान लोग श्राद्ध कर्म करते हैं। अपने पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान करते हैं। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का ये सबसे बड़ा पर्व माना जाता है।
पंडित शक्तिधर बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष के आश्विन कृष्ण पक्ष का 15 दिन पितृपक्ष कहलाता है। अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का यह पावन अवसर है। पुं नाम नरकात त्रायते यः सः पुत्रः । अर्थात पुत्र जीवित माता-पिता की सेवा करे और मरणोपरांत पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करें तो वह पितृऋण से मुक्त होता है। इस प्रकार अपने मृत पूर्वजों अर्थात पितरों को संतुष्ट करने के लिए किया जाने वाला पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान जो श्रद्धा के साथ किया जाए वह श्राद्ध है।
अज्ञात तिथि वालों का इस दिन करें श्राद्ध
पंडित शक्तिधर कहते हैं कि वैसे तो श्राद्ध मृत्यु वाली तिथि को किया जाता है किन्तु पूर्णिमा का श्राद्ध नाना-नानी के लिए ,चतुर्दशी को अकाल मृत्यु वाले के लिए तथा अमावस्या का श्राद्ध अज्ञात तिथि वालों का होता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष नियम भी हैं – सधवा स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध नवमी को होगा। कोई पूर्वज संन्यासी हो गया हो तो उसका द्वादशी को होगा।
ऐसे करें श्राद्ध –
पितरों के निमित्त सभी क्रियाएं जनेऊ दाएं कंधे पर रखकर और दक्षिनाभिमुख होकर की जाती है। तर्पण काले तिल मिश्रित जल से किया जाता है। श्राद्ध का भोजन, दूध, चावल, शक्कर और घी से बने पदार्थ का होता है। कुश के आसन पर बैठकर कुत्ता और कौवे के लिए भोजन रखें। इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का 3 बार जप करें —
ओम देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः।
स्वधायै स्वाहायै नित्य में भवन्तु ते ।
तदुपरांत तीन -तीन आहुतियां –
आग्नेय काव्यवाहनाय स्वाहा
सोमाय पितृ भते स्वाहा
वै वस्वताय स्वाहा
इतना करना भी संभव न हो तो जलपात्र में काला तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुहं करके तर्पण करें और ब्राह्मण को फल मिष्ठान्न खिलाकर दक्षिणा दें ।
इन बातों का रखें ध्यान –
श्राद्ध के दिन एक समय भोजन, भूमि शयन व ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है। इन दिनों में पान खाना, तेल लगाना ,धूम्रपान आदि वर्जित है। इसके अतिरिक्त भोजन में उड़द, मसूर, चना, अरहर, गाजर, लौकी, बैगन, प्याज और लहसुन का निषेध है।