दुनिया का हर चौथा डायबिटिक है भारतीय

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नई दिल्ली(एजेंसी):दुनिया में 42 करोड़ लोगों को डायबिटीज है जिनमें से 10 करोड़ लोग भारत में रहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने डायबिटीज पर पहली ग्लोबल रिपोर्ट में ये ताजा आंकड़े जारी किए हैं। भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में मधुमेह एक घातक बीमारी का रूप धारण करता जा रहा है। आने वाले दिनों में देश के लिए डायबिटीज एक चुनौती के रूप में सामने आने वाली है। जागरूकता के अभाव में लोग शारीरिक व्यायाम और परिश्रम नहीं करते। बदलते वक्त में बदली जीवनशैली और आराम तलबी की आदत डायबिटीज को न्योता दे रही है। पेश है भारत में बढ़ती डायबिटीज की महामारी पर एक रिपोर्ट

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक ने कहा कि मधुमेह आज लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत समेत दक्षिण एशिया के देशों को मधुमेह की रोकथाम के लिए सुनियोजित पहल करनी चाहिए जो बेहद घातक बनता जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में डायबिटीज से ग्रस्त लोगों की तादाद विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में तेजी से बढ़ी है। साल 2030 से यह सातवां सबसे बड़ा जानलेवा कारक बन सकता है।

मीठा खाने से मधुमेह होने की धारणा गलत
विभिन्न अध्ययनों से यह बात गलत साबित हो चुकी है कि मधुमेह अधिक मीठा खाने से होता है। ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं जिन्हें मीठा पसंद नहीं है लेकिन इसके बावजूद वे मधुमेह के शिकार हैं। मधुमेह मीठा खाने के कारण नहीं होता लेकिन एक बार यह हो जाए तो मरीज को मीठे से दूर रहना पड़ता है।
आधुनिकता के प्रसार के साथ-साथ हमारी जीवनशैली में अनेक विकृतियां आ गई हैं। अब लोग शारीरिक श्रम न के बराबर करते हैं। भोजन भी ऐसा जो मधुमेह और हृदय रोग के खतरे को बढ़ा देता है।

आधुनिक जीवनशैली बनी घातक
तनाव, फास्ट फूड, आपाधापी का जीवन, मानसिक अशांति की सबसे बड़ी कीमत शरीर को ही चुकानी पड़ती है। भारत में मधुमेह के चौतरफा प्रसार को लेकर जो अध्ययन हुए हैं वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण, आधुनिक युग के तनाव, खानपान व रहन-सहन की शैली में परिवर्तन, पश्चिमीकरण व शारीरिक परिश्रम की कमी के  कारण ही मधुमेह पसरता जा रहा है। इस रोग के कारण रक्त में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है। वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन भारत में 95 फीसदी से ज्यादा वयस्क ही इसकी चपेट में आते हैं।

जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक पर ज्यादा टैक्स लगाएगी सरकार
देश में मधुमेह और मोटापे का खतरा गंभीर स्तर तक पहुंच गया है। इसको देखते हुए सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। सरकार जल्द ही मोटापे और मधुमेह का खतरा बढ़ाने वाले जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक पर ज्यादा टैक्स लगाने वाली है। इसके साथ ही इनके विज्ञापन से संबंधित नियमों को भी कड़ा बनाया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय इन खाद्य पदार्थों की मांग को कम करने के लिए ऐसे कदम उठा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कोल्ड ड्रिंक या अन्य तरह के मीठे पेय पदार्थ की खपत 1998 में दो लीटर प्रति व्यक्ति थी। लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 11 लीटर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गया है। ऐसे में सरकार ने डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार ऐसे खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग पर भी कड़े नियम लागू करने का संकेत दे दिया है।

मधुमेह के इलाज पर निजी कंपनी के साथ शोध करेगी सरकार
देश में मधुमेह मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच केंद्र सरकार के ट्रांस्लेशनल हेल्थ साइंस एंड टैक्नोलाजी इंस्टीटयूट (टीएचएसटीआई) का विशिष्ट केंद्र ड्रग डिस्कवरी रिसर्च सेंटर तथा हैदराबाद की कंपनी रिवीलेशंस बायोटेक प्राइवेट लि़ ने इस बीमारी का पता लगाने और इलाज की नई पद्धति विकसित करने के लिए समझौता किया है। टीएचएसटीआई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है।

सॉफ्टवेयर पैकेज विकसित होगा
समझौते के तहत डीडीआरसी और रिवीलेशंस बायोटेक प्राइवेट लि़ आंकड़ों पर आधारित सॉफ्टवेयर पैकेज विकसित करेगा जो न सिर्फ उन लोगों और युवाओं की पहचान करेगा जिन्हें मधुमेह होने का खतरा नजदीक है। इसके अलावा पहले से मधुमेह के शिकार लोगों के लिए इस तकनीक से यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि भविष्य में व्यक्ति के अंदर यह रोग क्या रुख अपना सकता है। इससे समय रहते लोगों को चेतावनी मिल जाने से लोग अपनी जीवनशैली में परिवतर्न ला पाएंगे और बीमारी से बेहतर तरीके से निपट सकेंगे।

दवा का करेंगे विकास
दोनों संस्थान मिलकर ऐसी दवा विकसित करेंगे जो गुर्दों में ग्लूकोज को फिर से अवशोषित होने से रोकेगा। पुन: अवशोषित होने की प्रक्रिया डायबिटिक लोगों में हाई ग्लाईसेमिक स्तर को बरकरार रखने में योगदान करती है। एक प्रभावी दवा से इस प्रक्रिया को रोक कर ब्लड ग्लूकोज को कम किया जा सकेगा। देश में मधुमेह के मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार इसके उपचार पर देश को सालाना 1.50 लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। इसका कारण जीवनशैली में बदलाव है। लोग अधिक कै लोरी वाली खुराक ले रहे हैं और शारीरिक रूप से मेहतन नहीं कर रहे।

827 अरब डॉलर से भी ज्यादा डायबिटीज के इलाज के लिए दुनियाभर में हो रहा खर्च।
1980 में दुनिया में करीब 10 करोड़ वयस्क लोगों को डायबिटीज थी यह आंकडम 2014 में चार गुणा बढ़ाकर 42 करोड़ हो गया।
1.50 लाख करोड़ रुपए सालाना खर्च कर रहा देश मधुमेह के इलाज पर।
1980 में जहां दुनिया की आबादी के 4.7 प्रतिशत लोगों को ये बीमारी थी, 2014 में अब ये दर दोगुनी होकर 8.5 प्रतिशत हो गई है।

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