एम्सटर्डम(एजेंसी): टाइप-2 डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ब्लड शुगर नियंत्रित रखने के लिए एक नई इलाज पद्धति खोज निकाली है, जिसे अपनाने के बाद छह महीने के भीतर ही रोज-रोज इंसुलिन के इंजेक्शन लेने के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी।
अस्पताल में 45 मिनट में पूरी होने वाली इस प्रक्रिया के तहत मरीज को गर्म पानी से भरा एक गुब्बारा निगलवाया जाता है। यह गुब्बारा छोटी आंत में पहुंचकर उसकी बाहरी परत ‘ड्यूडेनम’ को तेज ऊष्मा प्रदान करता है। इससे वहां मौजूद पुरानी कोशिकाएं जल जाती हैं। उनकी जगह नई कोशिकाओं का विकास होने लगता है। ये कोशिकाएं अग्नाशय को इंसुलिन के उत्पादन के लिए प्रेरित करती हैं, जो ब्लड शुगर को काबू में रखने के लिए बेहद जरूरी है।
‘यूनाइटेड यूरोपियन गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी मेडिकल ग्रुप कॉन्फ्रेंस’ में पेश अध्ययन में शोधकर्ता डॉ. सुजैन मेरिंग ने दावा किया कि नई इलाज पद्धति टाइप-2 डायबिटीज के उपचार में नई क्रांति लाएगी। मरीज को महज एक बार ‘एंडोस्कोपी’ सरीखी चिकित्सकीय प्रक्रिया से गुजरना होगा और वह ताउम्र इंसुलिन के इंजेक्शन लेने के झंझट से छुटकारा पा लेगा।
उन्होंने बताया कि मरीज की आंत में पहुंचाए जाने वाले गुब्बारे में 90 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला पानी भरा होगा, जो ‘ड्यूडेनम’ की विकृत कोशिकाओं को नई कोशिकाओं से बदल देगा। ये कोशिकाएं अग्नाशय को इंसुलिन पैदा करने का संदेश देती हैं।
असरदार-
-23% टाइप-2 डायबिटीज रोगियों को ब्लड शुगर नियंत्रित रखने के लिए इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है।
-नई इलाज पद्धति अपनाने के बाद 75% मरीजों को छह महीने में ही इंसुलिन के इंजेक्शन से मुक्ति मिल गई।
-इन प्रतिभागियों का बीएमआई (वजन और लंबाई का अनुपात) 29.2 से घटकर औसतन 26.4 पर पहुंच गया।
इसलिए जरूरी है इंसुलिन
-इंसुलिन अग्नाशय में पैदा होने वाला एक अहम हार्मोन है, जो ग्लूकोज को ऊर्जा में तब्दील कर मोटापे और डायबिटीज की समस्या को दूर रखता है।
बढ़ती कमी चिंता का सबब
-08 करोड़ डायबिटीज रोगियों को इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ने का अनुमान 2030 तक
-इंसुलिन की मांग में एशिया-अफ्रीका में 20 फीसदी इजाफा होने की आशंका जताई गई है।
-दुनियाभर में 3.3 करोड़ डायबिटीज रोगियों को मौजूदा समय में इंसुलिन तक पहुंच हासिल नहीं है।