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नवाब हुसैन
कोरबा@M4S: होली का नाम लेते ही जहन में रंग-गुलाल व उमंग का ख्याल मन में हिलोरे मारने लगता है..लेकिन कोरबा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां के ग्रामीण पिछले कई दशकों से होली नहीं मनाते..आईये जानते है आखिर कारण क्या है कि ग्रामीण होली खेलना पसंद नहीं करते।
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रंग-बिरंगे त्यौहार होली की बात हो और रंग-गुलाल न उड़े यह सुनने में अटपटा जरुर लगता है लेकिन यह सच है कि कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पुरेना का आश्रित ग्राम खरहरी के निवासी पिछले कई दशकों से होली नहीं खेलते..चलिए हम आपको बता दें कि आपसी भाई चारे एवं सामाजिक सौहार्द का पर्व आखिर ग्रामीण क्यों नहीं मनाते है..ग्रामीणों के अनुसार 150वर्ष पूर्व जब उनके पूर्वजों द्वारा होलिका दहन गांव में किया जा रहा था ठीक उसी समय उनके घर भी जलने लगे..और ग्रामीण घरों में लगी आग को किसी दैविय प्रकोप का नतीजा मान बैठे..यही कारण है कि तब से आज तक पूरे गांव में होली सन्नाटा पसर जाता है..वहीं चंद्रिका बाई ग्रामीण यह भी बताया है कि होली के दिन गांव का ही एक ग्रामीण होली खेलकर पड़ोसी गांव से अपने गांव खरहरी पहुंचा तो उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उसकी मृत्यु हो गई..जिससे ये ग्रामीण दहशत में आये और कभी होली न खेलने का प्रण ले लिया।
हीरासिंह और लता बाई का कहना है की ग्राम खरहरी के ग्रामीण होली न खेलने के पिछे एक दैविक कारण को भी बताते है कि गांव के करीब में आदिशक्ति मां मड़वारानी का मंदिर स्थित है एक ग्रामीण के अनुसार देवी ने उसे स्वप्न दिया कि उनके गांव के लोग होली न मनाये और उसी को दैविक भविष्यवाणी मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी होली का पर्व न मनाने का यहां के ग्रामीणों ने फैसला कर लिया।
खरहरी गांव में होली न मनाने की परंपरा आज भी कायम है,समाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे का यह पर्व होली जहां एक ओर हर्षोल्लास व उमंग ले कर आता है..लेकिन खरहरी गांव के ग्रामीणों के लिए इस त्यौहार के कोई मायने नहीं है.