कोरबा@M4S:मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ गरीबों और प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को केंद्र में रखकर जिले की तीन वामपंथी पार्टियां ने 16 जून को विरोध दिवस मनाया । इसके साथ ही वाम पार्टियां ने जिले के क्वारंटाइन केंद्रों और राहत शिविरों में रखे गए प्रवासी मजदूरों को पौष्टिक आहार देने, चिकित्सा सहित सभी बुनियादी मानवीय सुविधाएं की भी मांग की।
विरोध दिवस के अवसर पर घंटाघर चौक में अम्बेडकर प्रतिमा के सामने तीनों वामपंथी पार्टियों ने नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन कर जिला प्रशासन को प्रधानमंत्री के नाम चार शुत्रीय मांग पत्र सोंपे और माकपा द्वारा गांव गांव में विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें माकपा पार्षद सुरती कुलदीप, राजकुमारी कंवर प्रमुख रूप से शामिल थे
आज यहां जारी एक संयुक्त बयान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रशांत झा, भाकपा के एम एल रजक , भाकपा (माले)- के बी एल नेताम ने कहा है कि राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये जिस तरीके से तालाबंदी की गई, उसमें न तो लॉक-डाऊन के बुनियादी सिद्धांतों — टेस्टिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन — का पालन किया गया और न ही महामारी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह को माना गया। नतीजा यह है कि लॉक डाऊन से पहले की तुलना में आज संक्रमित लोगों की संख्या 700 गुना और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 1000 गुना से ज्यादा हो चुकी है और पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी है। इस असफलता के बाद फिर जिस तरह मोदी सरकार ने अनियोजित ढंग से लॉक डाऊन हटाने का पूरा जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है, उससे स्पष्ट है कि उसने आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को त्यागकर उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया है।
उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने में मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त और जनविरोधी नीतियों की बहुत बड़ी भूमिका है। नतीजन उससे न तो देश में कोरोना महामारी पर काबू पाया जा सका है और न ही आम जनता को राहत देने के कोई कदम उठाये गए हैं। आम जनता बेकारी, भुखमरी और कंगाली की कगार पर पहुंच चुकी है। प्रवासी मजदूर अपनी घर वापसी के लिए आज भी सड़क नापने को मजबूर हैं, असंगठित क्षेत्र के 15 करोड़ लोगों की आजीविका खत्म हो गई है और खेती-किसानी चौपट हो गई है।
वाम नेताओं ने कहा कि आज अर्थव्यवस्था जिस मंदी में फंस चुकी है, उससे निकलने का एकमात्र रास्ता यह है कि आम जनता के हाथों में नगद राशि पहुंचाई जाए तथा उसके स्वास्थ्य और भोजन की आवश्यकताएं पूरी की जाए, ताकि उसकी क्रय शक्ति में वृद्धि हो और बाजार में मांग पैदा हो। उसे राहत के रूप में “कर्ज नहीं, कैश चाहिए”, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संकट आपूर्ति का नहीं, मांग का है।
इसीलिए वामपंथी पार्टियां आयकर के दायरे के बाहर के सभी परिवारों को आगामी छह माह तक 7500 रुपये मासिक नगद दिए जाने और हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज हर माह मुफ्त दिए जाने; सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को खाना-पानी के साथ अपने घर लौटने के लिए मुफ्त परिवहन की व्यवस्था उपलब्ध कराने; मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम उपलब्ध कराने तथा इस योजना का विस्तार शहरी गरीबों के लिए भी किये जाने; मनरेगा में मजदूरी दर न्यूनतम वेतन के बराबर दिए जाने तथा सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने; राष्ट्रीय संपत्ति की लूट बंद करने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगाने और श्रम कानूनों और कृषि कानूनों को तोड़-मरोड़कर उन्हें खत्म करने की साजिश पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि इतने संकट में भी आम जनता की आजीविका की रक्षा तथा उसे सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए कदम उठाने के बजाय मोदी सरकार कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए ही प्रतिबद्ध है। 20 लाख करोड़ रुपयों का कथित राहत पैकेज कार्पोरेटों को ही समर्पित हैं, जबकि दूसरी ओर यह सरकार कोरोना संकट से लड़ने के नाम पर श्रम कानूनों को खत्म करके 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम करने का मजदूर विरोधी प्रावधान लागू कर रही है और राज्यों को विश्वास में लिए बिना मौजूदा कृषि कानूनों को खत्म कर ठेका खेती को लागू कर रही है। इन नव-उदारवादी नीतियों से पैदा होने वाले असंतोष को तोड़ने के लिए वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नीति पर चल रही है।
विरोध प्रदर्शन में प्रमुख रूप से जनकदास कुलदीप, जवाहर सिंह कंवर, एस एन बनर्जी, संतोष सिंह, सुनील सिंह, प्रभुनाथ राय शामिल थे