उठाव में नहीं आ रही तेजी, केन्द्रों में धान जाम

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समितियों की बढ़ी परेशानी, हाथी प्रभावित क्षेत्र भी है शामिल
कोरबा। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की समयावधि 31 जनवरी को पूर्ण हो चुकी है। तिथि पूर्ण होने के बाद भी धान उठाव के कार्य में अपेक्षाकृत तेजी नहीं आ पा रही है। लिहाजा अब भी विभिन्न समितियों में 1.47 लाख क्विंटल धान जाम पड़ा है। इनमें हाथी प्रभावित इलाके की पांच समितियां भी शामिल है। हाथी प्रभावित क्षेत्रों के समितियों की चिंता बढ़ गई है। मार्कफेड की ओर से डीओ जारी नहीं होने से समस्या बढ़ी है। स्थानीय प्रशासन को इस दिशा में संज्ञान लेने की जरूरत है।
राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2018-19 के लिए पंजीकृत किसानों से समर्थन मूल्य 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर धान की खरीदी की। कोरबा जिले में 20 हजार से ज्यादा किसानों ने इस प्रक्रिया में अपने उत्पाद की बिक्री 41 उपार्जन केंद्रों में की। इस बार कोरबा जिले से धान खरीदी के लिए 12 टन का लक्ष्य रखा गया था। समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी और प्रोत्साहन राशि देने का सीधा असर यह हुआ कि इससे विक्रय मात्रा पूर्व की वर्षों की तुलना में कुछ बढ़ी। इस हिसाब से विके्रताओं को समर्थन मूल्य अदा किया गया। कवायद यह थी कि आवक के साथ धान का उठाव मिलर्स के लिए किया जाए। इसके तहत दावे बड़े-बड़े किये गए। समन्वय बनाकर काम करने की बातें जरूर की गई लेकिन परिणाम इस तरह सामने नहीं आ सके। 1 नवंबर से प्रारंभ की गई धान खरीदी अंतिम रूप से 31 जनवरी को खत्म हो गई। इसके बावजूद उठाव की स्थिति उत्साहजनक नहीं है। वर्तमान स्थिति में कोरबा जिले में विभिन्न समितियों के स्तर पर 1.47 लाख क्विंटल धान उठाव के लिए शेष है। इनमें 47 हजार क्विंटल धान उन क्षेत्रों की है, जो हाथियों के प्रभाव क्षेत्र में हैं। ये समितियां कोरबी, सिरमिना, पसान, बरपाली और श्यांग हैं। कई दिनों से इन क्षेत्रों में हाथियों की धमक कायम है। कई तरह का नुकसान हाथी कर चुके हैं। जन-धन की हानि होने से आम लोग के साथ-साथ सरकारी अमला त्रस्त है। हाथियों के अलावा बेमौसम हो रही बारिश भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यद्यपि समितियों को उपार्जित धान के संरक्षण के लिए संसाधन दिए गए हैं लेकिन बारिश से बचने के बावजूद हाथियों की दखल को लेकर उनकी चिंता स्वभाविक है। खबर है कि 18 जनवरी के बाद नए सिरे से डीओ काटे जाने को लेकर मार्कफेड की ओर से कोई रूचि नहीं ली गई। बार-बार ज्वलंत समस्याओं की जानकारी अधिकारियों को दी गई। इन सबके बावजूद उन्होंने धान का उठाव कराने में ध्यान नहीं दिया। सवाल किया जाना स्वभाविक है कि अगर उच्च स्तर से निर्धारित प्रक्रियाओं की पूर्ति नहीं करने पर खासतौर पर हाथी प्रभावित क्षेत्रों में अगर धान को नुकसान पहुंचता है तो इसकी भरपायी आखिर किससे और किस तरह से की जाएगी। समितियों का कहना है कि अपने स्तर पर उन्होंने धान की खरीदी सत्र में किये हैं और इसके बाद उठाव की जिम्मेदारी मार्कफेड की बनती है। समस्या का निराकरण किस तरह शीघ्रता से हो, इस दिशा में अधिकारियों को गंभीरता दिखानी होगी।
31 तक थी सत्यापन की मियाद
18 जनवरी से 31 जनवरी तक राइस मिलर्स का सत्यापन हो रहा था, इसलिए डीओ काटने का काम थमा रहा। 1 फरवरी के बाद से डीओ काटे गए हैं। इसके बावजूद संबंधित मात्रा का उठाव भी नहीं हो सका। उठाव के अभाव में समितियों की दिक्कतें बढ़ी हुई है।
सॉफ्टवेयर भी बना मुसीबत
खबर है कि उठाव को लेकर जो परेशानी पेश आ रही है उसमें एक बड़ी समस्या सॉफ्टवेयर भी है। वह उठाव के लिए नजदीकी केंद्रों को सलेक्ट कर रहा है। इससे दूरस्थ केंद्र दूर होते जा रहे हैं।

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