कोरबा@M4S: सरकार का विभिन्न मदों का खजाना तो जंगल की सुरक्षा व विभिन्न निर्माण के नाम पर खाली हो रहा है, लेकिन काम अपेक्षित नहीं दिख रहा है। जहां अनदेखी के साथ आधे- अधूरे, गुणवत्ताहीन और मनमाने काम से न तो लाभ मिल रहा और न सरकार की मंशा पूर्ण हो रही है। इस वजह से कटघोरा वन मंडल हमेशा सुर्खियों में बना रहता है।
वन परिक्षेत्र कटघोरा के ग्राम लखनपुर के समीप मुख्यमार्ग किनारे बेशकीमती साल के जंगल में कब्जा कर मकान, दुकान का निर्माण करा लिया गया है। वन कर्मचारियों व बिचौलिये की सांठगांठ से जंगल की जमीन पर कब्जा की चर्चा सरगर्म है। इस पूरे मामले में वन विभाग मूकदर्शक बना हुआ।
अतिक्रमण विभाग की नाकामी का ही नतीजा है, जिसके चलते जंगल मे कब्जा करने का सिलसिला जारी है। यदि वन अमला सक्रिय रहता तो शुरुआत में ही कब्जे को रोककर कार्रवाई की जा सकती थी, किन्तु संसाधन सम्पन्न होने के बावजूद वन विभाग अतिक्रमण हटाने में रुचि नही लेता और न ही अतिक्रमियों को बीपीएलई एक्ट के तहत नोटिस जारी किया जाता है। दूसरी ओर वनभूमि की सुरक्षा के लिए सरकार ने ज्योग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम (जीआईएस) तैयार किया है। यह इंटरनेट से जुड़ा होता है, ताकि अधिकारी दफ्तर में कम्प्यूटर के जरिये जंगल की जमीन पर नजर रख सके। लेकिन कटघोरा वनमंडल में शायद ही जीआईएस का इस्तेमाल किया जाता होगा। यही कारण है कि वनभूमि पर अतिक्रमण का खेल पैर पसारता जा रहा है, जिसे देख लगता है कि अतिक्रमणकारियों को वन विभाग की ओर से कब्जे की खुली छूट मिल गई है। कटघोरा वनमंडल के जंगलों में कब्जे की वजह से वन क्षेत्र का दायरा तो सिमट रहा है, साथ ही वन्यप्राणियों का कुनबा बढऩे से उनके लिए विचरण का क्षेत्र कम पड़ रहा है और बढ़ते अतिक्रमण उनके रहवास में खलल डाल रहे है। ऐसे में वन्यजीवों को बेहतर रहवास न मिलने से वे हिंसक होने के साथ रहवासी क्षेत्र की ओर बढ़ रहे है। अगर यही हाल रहा और अधिकारी अपने दायित्वों के विमुख आंख मूंदे बैठे रहे तो कटघोरा वनमंडल का रकबा तेजी से घटने के साथ वन्य प्राणियों के और भी हिंसक होने से इंकार नही किया जा सकता।