ठंड शुरू होने के साथ ही अपने वतन लौटने लगे एशियन बिल स्ट्रोक हर साल वियतमान, थाइलैंड, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, म्यांमार से आते हैं पक्षी

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कोरबा@M4S: वर्षों से कनकी में प्रतिवर्ष अपने प्रजनन काल वर्षा ऋतु के शुरू होते-होते जून के अंत जुलाई माह के प्रारंभ में हजारों की संख्या में आने वाले एशियन बिल स्ट्रोक पक्षी अब ठंड शुरू होने के साथ अपने वतन की ओर लौटने लगे हैं। ग्राम के बुजुर्गों के अनुसार ये पक्षी यहां कब से आ रहे हैं वे भी नहीं जानते। उनके पूर्वजों ने इन पक्षियों को कभी भी नुकसान न पहुंचाने का कड़ा निर्देश देते थे।


गांव के इन पक्षियों के सुरक्षा के लिए विशेष निर्देश एवं इंतजाम किए जाते हैं। गांव में इन्हें मारने एवं सताने पर अर्थदंड का सख्त नियम है। इससे इन पक्षियों को मेहमान मानकर कभी कोई नुकसान एवं परेशान नहीं करता।ग्रामीणों के अनुसार सख्ती का नियम बना जरूर है परन्तु कभी भी इस नियम को तोडऩे का दंड किसी को नहीं मिला है। यानी पूरा गांव इन पक्षियों को अतिथि देवभव मानता है। इन पक्षियों को देखने काफी लोगों का बाहर से आना-जाना भी लगा रहता है। अक्सर यह पक्षी मानसून खत्म होते होते लौटने लगते हैं। इस वर्ष मौसम परिवर्तन के कारण अभी नवंबर में इन पक्षियों ने लौटना शुरू किया है।ग्राम कनकी सहित आसपास ग्रामों के कृषकों ने बताया कि बरसात में इन पक्षियों के रहने से हमारे खेतों में केंचुए, घेंघा, केकड़ा आदि कीटव्याधि से निश्चित रहते हैं। क्योंकि ये कीट इन पक्षियों के प्रिय भोजन हैं। इसलिए वे इन पक्षियों को परेशान नहीं करते। प्रतिवर्ष ये पक्षी वियतमान, थाइलैंड, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, म्यामार आदि देशों से यहां आते हैं। जून के आखिरी में यहां पहुंचने के बाद जुलाई में इनका प्रजनन काल होता है। प्रजनन के साथ ही उत्तम एवं पौष्टिक आहार की पर्याप्त व्यवस्था यहां होने से सैकड़ों हजारों मील दूर से ये पक्षी नदियों के आसपास के गांव में छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों में आ जाते हैं। आहार एवं प्रजनन के लिए इन पक्षियों के लिए अंचल लंबे समय से पसंदीदा क्षेत्र बना हुआ है।

पक्षियों के आने का इंतजार करते हैं ग्रामीण
ग्राम कनकी में इमली, बरगद, पीपल, आम के पेड़ों में इन पक्षियों का बसेरा रहता है। ग्रामीणजन जैसे ही मानसून शुरू होता है इन पक्षियों का बेसब्री से इंतजार करने लगते हैं। इनके बसरे के वृक्षों के आसपास सफाई तथा वातावरण को इन पक्षियों के अनुकुल बनाने ग्रामीणों का उत्साह देखते ही बनता है। युवा वर्ग भी इन पक्षियों की आसपास में रूचि रखते हैं। गांवों के बुजुर्गों ने बताया कि ये पक्षी यहां कब से आ रहे हैं उनके बाप दादा भी नहीं बता पाते हैं।

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