जीवन का सार शिक्षा और संस्कार _ डॉ.गजेंद्र तिवारी

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कोरबा@M4S:छत्तीसगढ़ पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल पाली के शिक्षाविद प्राचार्य एवं कैरियर काउंसलर डॉ . गजेंद्र तिवारी का मानना है कि छात्र जीवन में हमें कई संस्कार सीखने मिलते हैं जो जीवन पर्यंत आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं हमें सिखाया जाता है कि सुबह जल्दी उठने से दिमाग और मन के विकार दूर होते हैं संस्कार न सिर्फ चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं बल्कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी संस्कारों का महत्व है संस्कारों से व्यक्ति महान बन जाता है जिसने भी इनको अपनाया जीवन के हर मोड़ पर वह सारे जहां का प्यारा सा इंसान बन जाता है कहा जाता है शिक्षा जीवन का अनमोल उपहार है और संस्कार जीवन के सार हैं इन दोनों के बिना धन दौलत जमीन जायजात प्रतिष्ठा और मान मर्यादा सब बेकार है शिक्षा व्यक्ति के जीवन को न केवल दिशा देती है वरना दशा भी बदल देती है। जब से शिक्षा का प्रचलन हुआ अनादि काल से अर्थात उस समय सीखे हुए ज्ञान को सहेज कर रखने के साधन भी नहीं थे तो भी ऋषि मुनि आचार्य गुरु और संत महात्माओं ने मानव जीवन के सार को पेड़ों के छालों पर लिखा सिलाओ पर लिखा और पत्तों पर लिखा और वही ज्ञान समयांतर विस्तृत होता गया प्रसारित प्रचारित होता गया और धीरे-धीरे आविष्कार होते गए और शिक्षा के स्वरूप में शिक्षा के उद्देश्य में तरीकों में और शिक्षा के मापदंडों में निरंतर परिवर्तन आता गया और आज ऐसा समय आ गया है कि जब तक दुनिया का, देश का समाज का और घर परिवार का प्रत्येक बच्चा शिक्षित नहीं किया जाएगा तो फिर हम उन्नत दुनिया उन्नत देश की कल्पना तक भी नहीं कर पाएंगे इसलिए आज समय बहुत तेजी से बदलता जा रहा है नई नई टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है शिक्षा के नए नए साधन आयाम विकसित और आविस्कृत हो रहे हैं दुनिया सिकुड़ रही है छोटी से छोटी घटना का पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ता है और युवाओं को समझने के लिए टेक्नोलॉजी को समझने के लिए समय के साथ चलने के लिए अपनी संतान को अच्छी शिक्षा सार्थक शिक्षा और व्यवहारिक शिक्षा से परिपूर्ण करना बहुत जरूरी है ।
डॉक्टर गजेंद्र तिवारी का मानना है कि जिस प्रकार से बिना हथियारों के कोई युद्ध नही जीता जा सकता उसी प्रकार बिना शिक्षा के जीवन को सार्थक और सच्चा नहीं बनाया जा सकता हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी बनती है कि हर हाल में अपनी संतान को शिक्षित बनाए ताकि वह परिवार समाज और देश के विकास में अहं भागीदारी निभा सके और राष्ट्र के अच्छे और जिम्मेदार नागरिक बन अपना दायित्व बखूबी निभा सके और जीवन को समझ और जी सके गर्व से।
डा गजेन्द्र तिवारी का मानना है कि संस्कारों के सबसे अधिक जिम्मेदारी माता-पिता परिजनों और शिक्षकों की होती है यह भी सच है कि संस्कार मात्र कहने से बोलने से नहीं आते हैं बल्कि यह तो व्यवहार से आते हैं आचरण से आते हैं सत्कर्म से आते हैं और चारित्रिक उज्जवलता से आते हैं माता-पिता जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही लगभग उनके बच्चे करते हैं हमेशा याद रखें आपकी हर, हरकतों कार्य और व्यवहार का बारीक निरीक्षण आपके बच्चे कर रहे हैं, ध्यान रहे वे कभी यह नहीं कह दे कि यह आपके क्या संस्कार हैं?

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