क्या आपको पता है कभी जैसलमेर में घूमते थे डायनासोर

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जैसलमेर(एजेंसी):जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग एवं प्राणी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास के बाद थार की भूमि पर डायनासोर के पैरों के निशान खोज निकाले गए हैं।

जेएनवीयू के भूगर्भ विज्ञान के डॉ वीरेन्द्रसिंह परिहार ने बताया कि वैज्ञानिकों ने जैसलमेर जिले के थईयात क्षेत्र में मध्य जुरासिक काल के यूब्रोंटस ग्लेनरोसेंसिस कहे जाने वाले डायनासोर होने के प्रमाण पाए हैं। यहां पाए गए पंजे के निशान त्रिपदीय जीव के मालूम होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार ये 30 सेमी लंबे और मजबूत पंजे का निशान है। अनुमान लगाया जा रहा है कि यह जीव उडने वाले डायनासोर और धरती पर चलने वाले डायनासोर के बीच की श्रेणी का है।

उन्होंने बताया कि अभी तक इसके अवशेष नहीं पाए गए हैं, लेकिन पंजे का निशान पाया जाना भारतीय वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि जिले में आज कई महत्वपूर्ण साइट्स पर खनन का कार्य चल रहा है। इससे बहुत से अवशेष नष्ट हो रहे हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जुरासिक काल के दौरान पानी पीने आए डायनोसॉर के पंजे से यह निशान बना होगा। फिर लाखों साल में थार से समुद्री जल का स्तर सिमटता रहा और यह क्षेत्र रेगिस्तान में तब्दील हो गया। इस पंजे के निशान पर अवसाद (सेडिमेंटस) की कई परतें जमती चली गईं और यही इसके संरक्षण का कारण बनीं।

जेएनवीयू के भूगर्भ विज्ञान के डा परिहार के साथ पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो सुरेशचंद्र माथुर, प्राणीशास्त्र विभाग के सहायक प्रो डॉ शंकरलाल नामा के करीब 15 साल तक किए गए अनुसंधान और मेहनत का नतीजा है यह खोज। पुर्तगाल में आयोजित चौथी अंतरराष्ट्रीय इक्नोलॉजीकल कांग्रेस इकीनिया में इस शोध को वैज्ञानिकों ने रजामंदी की मुहर लगा दी है।

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