कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ कई स्थानों पर हुए प्रदर्

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कोरबा@M4S:छत्तीसगढ़ किसान सभा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, जनवादी महिला समिति के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को बचाने और ग्रामीण जनता की आजीविका सुनिश्चित करने और देश के संविधान, संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा करने की मांग पर आज जिले में कई स्थानों पर किसानों ने अनेकों गांव में प्रदर्शन किया और इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों को वापस लेने की मांग की।

माकपा नेता प्रशांत झा ने आरोप लगाया कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। इन कानूनों का हम इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे खेती की लागत महंगी हो जाएगी, फसल के दाम गिर जाएंगे, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बढ़ जाएगी और कार्पोरेटों का हमारी कृषि व्यवस्था पर कब्जा हो जाने से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता भी खत्म जो जाएगी। यह किसानों और ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।

किसान नेता जवाहर सिंह कंवर, जनवादी महिला समिति की धनबाई कुलदीप माकपा की पार्षद राजकुमारी कंवर, सुरती कुलदीप सीटू नेता जनकदास,प्रताप दास,ने आंदोलन का नेतृत्व किया। प्रदर्शन को संबोधित करते हुए इन नेताओं ने “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग करते हुए कहा कि ये कानून कॉरपोरेटों के मुनाफों को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। इन कानूनों के कारण किसानों की फसल सस्ते में लूटी जाएगी और महंगी-से-महंगी बेची जाएगी। उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा। इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा। कुल नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी।

जिस अलोकतांत्रिक तरीके से संसदीय जनतंत्र को कुचलते हुए इन कानूनों को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि यह सरकार आम जनता की नहीं, अपने कॉर्पोरेट मालिकों की चाकरी कर रही है। ये कानून किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर कृषि-व्यापार कंपनियों को खरीदने की छूट देते हैं, किसी भी विवाद में किसान के कोर्ट में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं, खाद्यान्न की असीमित जमाखोरी को बढ़ावा देते हैं और इन कंपनियों को हर साल 50 से 100% कीमत बढ़ाने का कानूनी अधिकार देते है। इन काले कानूनों में इस बात का भी प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी, जबकि बाजार में भाव चढ़ने पर भी कम कीमत पर किसान इन्हीं कंपनियों को अपनी फसल बेचने के लिए बाध्य है — यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेटों का! इससे भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के गुलाम बनकर रह जाएंगे। इससे किसान आत्महत्याओं में और ज्यादा वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से मोदी सरकार की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों की आय दुगुनी करने की लफ्फाजी की भी कलई खुल गई है।

माकपा ने इन काले कानूनों के खिलाफ साझा संघर्ष को और तेज करने और इस पर जमीनी स्तर पर अमल न होने देने का भी फैसला किया है।

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