आप पर संकट: इस वकील की वजह से AAP विधायकों की सदस्यता पर लटकी तलवार

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नई दिल्ली @एजेंसी:चुनाव आयोग ने लाभ के पद पर रहने के आरोप में दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है। आयोग ने अपनी सिफारिश मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दी है। अब यदि राष्ट्रपति सिफारिशों को स्वीकार करते हैं तो दिल्ली एक छोटा विधानसभा चुनाव देख सकती है, जिसमें 70 सदस्यीय सदन की 20 सीटों पर चुनाव होगा। आपको बता दें कि आप विधायकों के खिलाफ राष्ट्रपति के पास युवा वकील प्रशांत पटेल ने अर्जी डाली थी। 30 साल के प्रशांत ने साल 2015 में वकालत शुरु की थी। सितंबर 2015 में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने याचिका दायर कर संसदीय सचिवों की गैरकानूनी नियुक्ति पर सवाल खड़े किए थे।

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प्रशांत पटेल ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी के बाद नोएडा के एक कॉलेज से एलएलबी की है। वह इसके पहले बॉलीवुड एक्टर आमिर खान और डायरेक्टर राजकुमार हिरानी के खिलाफ भी फिल्म PK में हिंदू देवी देवताओं का गलत चित्रण करने को लेकर एफआईआर दर्ज करा चुके हैं। पटेल उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के रहने वाले हैं।

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आप विधायकों को पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया-पटेल

चुनाव आयोग के फैसले के बाद पटेल ने आप विधायकों के उन आरोपों बेबुनियाद बताया है है जिसमें कहा गया है कि फैसला देने से पहले उन्हें पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। पटेल ने बताया कि 14 जुलाई, 2016 से 27 मार्च, 2017 तक इस मामले में कुल 11 सुनवाई हुई। उन्होंने कहा कि सभी सुनवाई ढाई से तीन घंटे की हुई। पटेल ने कहा कि ऐसे में आप विधायकों द्वारा यह कहना कि आयोग में पक्ष रखने का उन्हें मौका नहीं दिया गया, यह काफी हास्यास्पद है। शिकायतकर्ता पटेल ने कहा कि लाभ के पद मामले में सभी 21 विधायक अपने वकीलों के माध्यम से आयोग में पक्ष रख चुके हैं। आयोग ने उन्हें मौखिक व लिखित में पक्ष रखने का भरपूर मौका दिया।

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पटेल ने आम आदमी पार्टी के उन आरोपों को भी आधारहीन बताया जिसमें कहा गया कि संसदीय सचिव बने विधायकों को एक रुपये भी नगद पैसे नहीं दिए गए, ऐसे में यह लाभ का पद नहीं है। इस बारे में प्रशांत पटेल ने कहा कि सीधे तौर पर पैसे लेना ही लाभ का पद नहीं है। उन्होंने कहा कि संसदीय सचिव बनने के बाद इन विधायकों ने सरकारी फाइलों को देखा और इस आधार पर निजी कंपनियों को टेंडर भी जारी किए। प्रशांत ने कहा कि इस बार में दिल्ली सरकार के ही मुख्य सचिव ने आयोग में 1200 पन्नों का दस्तावेज पेश किया। जिसमें यह बताया गया कि कौन से संसदीय सचिव ने किन फाइलों का मुआयना किया और ठेका जारी किया। जबकि उनको अधिकार नहीं है।

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